Saturday, March 15, 2025
Latest Newsकविताएं

एक फलसफ़ा

बस्ती बसने से पहले ही उजड़ गई!
सोचते -सोचते कब उम्र गुजर गई!!

काली रात तो सबक सीखा के चली गई!
सुबह तो ज़माने की फलसफा बता गई!!

मकसद के लिए जीना ही ज़िंदगी हो गई!
राह की सिलवटे ही मंजिल तक ले गई!!

नसीब से नहीं पसीने से रोटी मिल गई!
मेहनत क्या चीज होती है ये सीखा गई!!

अपने-पराये के खेल में इंसानियत छूट गई !
मोल-भाव के बाजार कीमत मिल नहीं पाई !!

!!शिवपूजन!!