चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढ़लता है ढ़ल जायेगा..। अजीज़ नाज़ा की वह कव्वाली जिसमें जिंदगी की हकीकत है शामिल
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!शिकोह अलबदर!
1980 के दशक में एक कव्वाली काफी मशहूर हुई. लंबे समय तक उस कव्वाली को सुना जाता रहा और आज भी गाहे बगाहे इस कव्वाली को याद कर लिया जाता है. अजीज़ नाज़ा की आवाज में यह कव्वाली सामने आया था जिसके बोल थे चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढ़लता है ढ़ल जायेगा..।
कव्वाली के सिन्फ में महारत हासिल करने वाले और इस कव्वाली से शोहरत बटोरने वाले सिंगर अजीज़ नाज़ा की आज यौम—ए—पैदाईश है.
आज सात मई है और हम याद कर रहे हैं अजीज़ नाज़ा को.. वही अजीज़ नाज़ा जिनकी कव्वाली चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढ़लता है ढ़ल जायेगा और झूम बराबर झूम शराबी को लोगों ने काफी सराहा और मकबूलिय मिली. कव्वाली जैसे सिन्फ में अजीज़ नाज़ा ने अलग—अलग प्रयोग किए और नई इबारत लिखी.
अजीज़ नाज़ा का पूरा नाम अब्दूल अजीज़ कुंजी मुनकर था और उनका जन्म सात मई 1938 को महाराष्ट्र के बंबई में हुआ था. उनका परिवार केरल से संंबंध रखता था जो बाद में मुंबई आकर बस गया था. क्ववाली के लिए उन्हें विशेष तौर पर याद किया जाता है. वह एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्लेबैक सिंगर थे. वे म्यूजिक डायरेक्टर भी रहे और कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लाइव परफॉर्म भी किये. एक प्लेबैक सिंगर के रूप में उन्होंने मुहम्मद रफी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर, आशा भोसलें जैसे गायकों के साथ कई फिल्मों में अपनी आवाज दी. साथ ही अजीज़ नाज़ा को आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, मोहम्मद जहूर ख्याम, कल्याण जी आनंद जी जैसे म्यूजिक डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका मिला.
अजीज़ नाज़ा को बागी क्ववाल के नाम से जाना जाता है. भारतीय सिनेमा के कव्वाली विधा में उनकी कव्वालियों को मकबूलियत हासिल है. कव्वाली के साथ वे बोंगो और हारमोनियम भी अच्छी तरह बजाते थे. उनकी क्ववाली झूम बराबर झूम शराबी का वाक्या ऐसा है कि 1975 में बिनाका गीतमाला जैसे प्रोग्राम में यह क्ववाली 20 हफ्तों तक लगातार टॉप 10 गानों में शुमार रहा.
अजीज़ नाज़ा गायकी के शौकीन थे हालांकि उनका परिवार इसे पसंद नहीं करता था. नौ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया. गायकी में गहरा शौक रखने के कारण वह एक आॅक्रेस्ट्रा में शामिल हो गये जहां वे लता मंगेशकर के गीत गाया करते थे. लेकिन जल्द ही उन्होंने इस्माइल आजाद नामक कव्वाल के साथ कोरस सिंगर के रूप में शामिल हो गये. यह वहीं इस्माइल आजाद हैं जिन्होंने हमें तो लूट लिया हुस्न वालों ने कव्वाली गाकर शोहरत बटोरी थी. कुछ समय उनके साथ रहने के बाद अजीज़ नाज़ा ने खुद कव्वाली लिखना और गाना शुरु किया और कव्वाली के सिन्फ में महारत हासिल कर बुलंदी तक पहुंचे.
1962 में जिया नही माना जैसे कव्वाली से उन्हें काफी शोहरत मिली. 1968 में उनका निगाहे करम काफी मशहूर हुआ. लेकिन कहा जाये तो उन्हें असली कामयाबी 1970 में झूम बराबर झूम शराबी से मिली. 1973 में मेरे गरीब नवाज फिल्म रिलीज किया गया. इस फिल्म के बीच में 20 मिनट का अजीज नाजा के झूम बराबर झूम शराबी को शामिल किया गया और इससे इस फिल्म को भी हिट मिली. 1974 में भी इस गाने को एक फिल्म में शामिल किया गया था. इसके बाद अजीज नाज़ा ने प्ले बैक सिंगर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने कई फिल्मों जैसे 1975 में बनी रफू चक्कर, फकीरा, 1976 में बनी लैला मजनू फिल्म के लिए होके मायूस तेरे दर से जैसे गाने से लोकप्रियता मिली. और 1978 में तृष्णा फिल्म के लिए गानों में आवाज दी. इस फिल्म में उन्हें हुस्न वाले किसी के यार नहीं होते हैं गाने के दौरान स्क्रीन पर आने का मौका मिला.
बचपन में वह उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब घर जाया करते थे जो मुंबई के भेड़ी बाजार में ही रहते थे. उस वक्त वहां भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई उस्ताद उनके यहां इकट्ठा हुआ करते थे. अजीज नाज़ा ने दरअसर गायकी के गुर वहीं से सीखे. उन्होंने पालकी, राम और श्याम,साथी और संघर्ष जैसी फिल्मों के लिए म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के साथ काम किया. वह इस्माइल आजाद की कव्वाली से काफी प्रेरित थे. हालांकि बाद के दिनों में उन्होंने कव्वाली के अपने स्टाइल को डेवलप किया जिसे काफी सराहा गया. उन्होंने अपने कव्वाली में पश्चिमी वाद्य यंत्रों जैसे बोंगो, गिटार, मंडोलिन को शामिल किया. यह वह समय था जब कव्वाली तबला और हारमोनियम के साथ ही प्रस्तूत किये जाते थे. लेकिन अजीज नाज़ा ने कव्वाली में एक नये रूप को सामने लाया.
8 अक्टूबर 1992 को वह इस फानी दुनिया से रूख़सत हो गये.