Friday, December 6, 2024
Latest Newsबड़ी खबरलाइफ स्टाइल

प्रजनन अंगों को पुष्ट करता है एक पाद सिरासन

पंच कर्मेंद्रियों में हाथ और पांव का बहुत महत्व है, क्योंकि ये दोनों ही जीवन यापन व पूर्ण आरोग्य के लिए महत्वपूर्ण हैं. पैर जीवन को गति देते हैं और कहते हैं इनमें स्वयं भगवान विष्णु का वास होता है. ये हमें पोषित करने में सबसे अधिक सहायक हैं. आज के समय में बहुत से व्यक्ति टखने, घुटने, हिप के जोड़ व कमर के दर्द से पीड़ित रहते हैं. इसकी वजह हमारी खराब जीवनशैली और खान-पान के साथ कम व्यायाम करना भी है. एक पाद सिरासन जोड़ों व पूरे पैरों को लचीला, सबल और मजबूत बनाता है. इस आसन के अभ्यास से मोटापा, अतिकाय एवं पेट से जुड़ी समस्याएं भी कम होती हैं.

विधि : दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं. ‌दाहिने घुटने को थोड़ा बाहर की ओर घुमाते हुए मोड़ें. दाहिनी भुजा को पिंडली के नीचे ले आएं और पैर के बाहरी भाग को ठीक टखने के ऊपर पकड़ लें. बायीं भुजा को ऊपर उठाएं और दाहिने टखने के बाहरी भाग को पकड़ लें. दाहिनी भुजा को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि कोहनी, जांघ और पैर के निचले भाग के बीच में रहें. भुजाओं और हाथों के सहारे दायें पैर को ऊपर उठाएं. जैसे ही पैर ऊपर उठें, धड़ को आगे झुकाएं और थोड़ा बायीं ओर मोड़ें. पंजे को दाहिने कंधे के ऊपर रखें. जोर न लगाएं. दाहिने हाथ की पकड़ ढीली कर दें. बायीं भुजा का उपयोग करते हुए और बायीं भुजा के ऊपरी भाग से जांघ को पीछे की ओर खिसकाते हुए दाहिने पैर को और ऊंचा उठाएं. बिना अधिक जोर लगाये दायें पंजे को सिर के पीछे, गर्दन को पिछले भाग पर रख दें. यह स्थिति पिंडली के नीचे गर्दन को आगे झुकाने से प्राप्त होती है और इस स्थिति में पिंडली कंधे पर टिकी रहती है. अंत में हाथों को प्रणाम मुद्रा में वक्ष के सामने उरोस्थि केंद्र पर रखें. मेरुदंड को सीधा करने का प्रयास करें और सिर को सीधा रखें.

यह अंतिम स्थिति है. आंखों को बंद कर लें और जितनी देर सुविधापूर्वक संभव हो, इस स्थिति में रहें. धीरे से पैर को मुक्त कर प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं. दूसरे पैर से अभ्यास को पुनरावृत्ति करें.

श्वसन : अंतिम स्थिति में आने तक सामान्य श्वास लें. अंतिम स्थिति में धीमी एवं गहरी श्वास लें. यह आसन प्रत्येक पैर से एक से दो बार कर सकते हैं. अभ्यास के समय शारीरिक संतुलन बनाये रखने पर ध्यान दें.

सीमाएं : स्लिप डिस्क, सायटिका से पीड़ित व्यक्ति यह आसन न करें.

लाभ : यह आसन पेट के दोनों भागों पर दबाव डालता है. आंतरिक अंगों की अच्छी मालिश करता है. कब्ज मिटाता है. यह प्रजनन अंगों को पुष्ट करता है और विकारों को दूर करता है. यह पैरों में रक्त-संचार बढ़ाता है और चक्रों में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है. रक्त में हीमोग्लोबीन की मात्रा बढ़ती है, जिससे शरीर और मन की ओजस्विता में वृद्धि होती है. एक पाद सिरासन नितंब, कमर, घुटनों व टखने के जोड़ों के लिए लाभकारी है. कमर से पैर तक की नस नाड़ियों को सक्रिय, लचीला व कारगर बनाता है व साइटिका नस को सक्रिय लचीला व क्षमतावान बनाता है.

सावधानी : उच्च रक्तचाप व हृदय रोगी इसे न करें. रीढ़ के लंबर के रोगी, स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिप डिस्क, पुराने कमर दर्द में व साइटिका के रोगी इस आसन को न करें. गर्भवती, बुखार से पीड़ित, पेट के संक्रमण, किडनी संक्रमण से ग्रसित रोगी इसे न करें.

अभ्यास टिप्पणी  : पाचन की स्वाभाविक दिशा में आंतरिक अंगों की मालिश के लिए दाएं पैर को पहले उठाना चाहिए. इस आसन का अभ्यास करने के लिए नितंबों का बहुत अधिक लचीला होना बेहद आवश्यक है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *